अपना सच बचा ले,
घर में बैठे-बैठे घर से दूर कर देगा,
ये फ़ोन तरे सच को चुर-चुर कर देगा।
जिसके लिए जीता है, उसी पर ध्यान न होगा,
सोचेबिना, जाने बिना तू ये कसूर कर देगा।
जो कुछ ज़रूरी है, उसे टालेगा हर पहर,
जोकुछ बेकार है, वो तो तू ज़रूर कर लेगा।
जो तेरे दिल में बैठे हैं, उन्हीं पर पर्दा डालकर,
किसीअजाने को तू घूर-घूर मशहूर कर देगा।
तूने कोशिश ही नहीं की, ये ख़बर कहाँ होगी,
हर नाकामी किस्मत मानकर मंज़ूर कर लेगा।
पंकज जैन
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