ग़म तो रहते है ग़म बदलते जाते है पर गम तो रहते है दुनिया सतना छोड़ दे पर हम तो रहते है जो मिला,उससे गिला,चलते ही जाते है ठहरे तो जानेकि खुद को खुद सताते है हर सांस के साथ एक सवाल बनता है सवाल का जवाब फिर सवाल बनता है दिन रात बुनते जाते है सबको उलझाने को खुद पहले उलझते है जब जाल बनता है जिनसे आप खफा है उनके भी अरमान है आप जिंदा है तो है उनमें भी जान है क्यों डर का,शिकायतों का काफिला सा है क्यूंकि रोज़ अरमानों का सिलसिला सा है।
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