अब कुछ भी, देर तक गलत, ना सही लगता है। ख़ुद के झान्से में मत आ फिर, यही लगता है। कहानी सपने दिखाती थी, कविता झकझोर देती थी। अब कुछ नहीं,हर फ़लसफ़ा, सतही लगता है। गुस्सा चिड़चिड़ में बदल गया, मोहब्बत बदली तानों में। नया कुछ करो फिर भी सब, वही वही लगता है। अब कुछ भी, देर तक गलत, ना सही लगता है। ख़ुद के झान्से में मत आ फिर, यही लगता है।
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